सरकारी नौकरी वालों के लिए झटका! अब कभी भी हो सकती है रिटायरमेंट – Retirement Age Big News

By Prerna Gupta

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Retirement Age Big News – अगर आप सरकारी नौकरी में हैं या बनने का सपना देख रहे हैं, तो ये खबर आपके लिए बहुत जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जो सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट (सेवानिवृत्ति) को लेकर भविष्य में बड़ी मिसाल बन सकता है। फैसले का सीधा मतलब ये है कि अब किसी भी सरकारी कर्मचारी को यह अधिकार नहीं है कि वह खुद तय करे कि कितनी उम्र तक नौकरी करेगा। ये फैसला पूरी तरह राज्य सरकारों के हाथ में है।

क्या है मामला?

इस पूरे मामले की शुरुआत हुई एक लोकोमोटर विकलांग इलेक्ट्रीशियन से, जिसे 58 साल की उम्र में जबरन रिटायर कर दिया गया था। अब उसी समय दूसरी कैटेगरी के यानी दृष्टिबाधित कर्मचारियों को 60 साल तक नौकरी करने की इजाजत दी गई। बस, यहीं से विवाद शुरू हो गया। विकलांग कर्मचारी ने इसे भेदभाव माना और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।

राज्य सरकार ने पहले एक आदेश निकाला था जिसमें दृष्टिबाधित कर्मचारियों की रिटायरमेंट एज 60 साल कर दी गई थी, लेकिन बाद में इस आदेश को वापस ले लिया गया। विकलांग इलेक्ट्रीशियन को 18 सितंबर 2018 को रिटायर कर दिया गया, लेकिन जब तक वो आदेश वैध था, तब तक उसे काम करने की इजाजत मिली।

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कोर्ट का फैसला: साफ और सटीक

सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन शामिल थे, उन्होंने सुनवाई करते हुए साफ कह दिया कि:

  • कर्मचारी खुद यह तय नहीं कर सकता कि उसे कितने साल की उम्र तक नौकरी करनी है।
  • यह पूरी तरह से राज्य सरकार का अधिकार है कि वह किसी को कितनी उम्र तक नौकरी में रखे और कब रिटायर करे।
  • सरकार चाहे तो 60 साल से पहले भी रिटायरमेंट दे सकती है।
  • अगर कोई विशेष छूट या सुविधा दी गई थी और बाद में उसे रद्द कर दिया गया, तो उसका लाभ भी उतनी ही अवधि तक मिलेगा जब तक वह नियम लागू था।

इसका मतलब यह भी हुआ कि भले ही आपको पहले कोई छूट मिली हो, लेकिन अगर सरकार ने उसे हटा दिया, तो अब आपको दोबारा उसका फायदा नहीं मिलेगा।

क्यों लिया गया यह फैसला?

सरकार की दलील थी कि अगर हर कर्मचारी खुद तय करने लगे कि वह कब रिटायर होगा तो सरकारी मशीनरी में अनुशासन नहीं रह पाएगा। और कोर्ट ने भी इस बात से सहमति जताई कि सरकारी सेवा में नियम और अनुशासन बनाए रखना बेहद जरूरी है। अगर सबको मनमर्जी की छूट दे दी जाए, तो व्यवस्था चरमरा सकती है।

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फैसले का मतलब आम कर्मचारियों के लिए

अब सवाल ये उठता है कि इस फैसले से आम कर्मचारियों पर क्या असर पड़ेगा? तो सीधे शब्दों में कहें तो:

  • अब यह राज्य सरकार पर निर्भर करेगा कि वह किस आयु में कर्मचारियों को रिटायर करे।
  • अगर सरकार चाहे तो 60 साल से पहले भी रिटायरमेंट दे सकती है, बशर्ते वो समानता के सिद्धांत का पालन करे।
  • कोई भी कर्मचारी यह नहीं कह सकता कि वह जब तक चाहे नौकरी करेगा।
  • हां, अगर कोई राज्य या विभाग किसी विशेष वर्ग (जैसे विकलांग) को अतिरिक्त सेवा अवधि दे रहा है, तो वह भी तयशुदा नीति और आदेश तक ही वैध मानी जाएगी।

भविष्य में क्या हो सकता है?

इस फैसले से एक बात तो पक्की हो गई है कि सरकारी नीतियों में कर्मचारियों को नियमों से चलना होगा, चाहे वह सेवा अवधि हो या प्रमोशन या रिटायरमेंट। अब हर राज्य सरकार के पास यह कानूनी आधार होगा कि वह अपनी नीतियों के अनुसार निर्णय ले सके, चाहे रिटायरमेंट उम्र घटानी हो या बढ़ानी हो।

क्या ये फैसला अन्य कर्मचारियों को प्रभावित करेगा?

हां, ये फैसला अब एक मिसाल के तौर पर देखा जाएगा। अगर किसी राज्य या विभाग में कर्मचारी अपनी सेवा अवधि को लेकर कोर्ट जाए तो यह निर्णय जरूर ध्यान में रखा जाएगा। और इसका असर भविष्य में आने वाले ऐसे कई मामलों पर पड़ेगा।

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सरकारी नौकरी में रिटायरमेंट की उम्र अब केवल एक आंकड़ा नहीं रह गया है, बल्कि यह पूरी तरह राज्य सरकार के हाथ में है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि सरकारी सेवा में काम करने वालों को नीतियों और आदेशों का पालन करना होगा। किसी को विशेष छूट मिलना भी एक तय सीमा तक ही मान्य होगा। अब अगर सरकार समय से पहले रिटायर करे तो वह भी पूरी तरह से कानूनी और वैध होगा।

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