पैतृक संपत्ति में पोते का हक तय! जानिए कब और कैसे मिलती है हिस्सेदारी – Ancestral Property Rights

By Prerna Gupta

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Ancestral Property Rights – आजकल प्रॉपर्टी को लेकर झगड़े और कोर्ट-कचहरी आम बात हो गई है। कई बार ऐसा देखा गया है कि परिवार के लोग ही एक-दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं, खासकर जब मामला दादा की संपत्ति का होता है। कई पोते ये सोचते हैं कि उन्हें दादा की हर तरह की संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए, लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है?

अगर आपके मन में भी यही सवाल है कि “क्या पोते को दादा की संपत्ति में कानूनी अधिकार मिलता है या नहीं?”, तो आप बिल्कुल सही जगह पर हैं। इस आर्टिकल में हम आसान भाषा में समझाएंगे कि कौन सी संपत्ति में पोते का हक होता है और कौन सी में नहीं, और कौन से कानून इसमें मदद करते हैं।

सबसे पहले समझें: दो तरह की संपत्ति होती है

भारतीय कानून में संपत्ति को दो भागों में बांटा गया है:

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  1. स्व-अर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property):
    ये वो संपत्ति होती है जो दादाजी ने अपनी मेहनत से खुद खरीदी होती है।
  2. पैतृक संपत्ति (Ancestral Property):
    ये वो संपत्ति होती है जो दादाजी को उनके पिता या पूर्वजों से विरासत में मिली होती है।

अब बात करते हैं कि इन दोनों संपत्तियों में पोते का क्या हक होता है।

स्व-अर्जित संपत्ति में पोते का कोई हक नहीं

अगर दादाजी ने अपनी मेहनत से कोई जमीन, मकान या दुकान खरीदी है यानी वो Self-Acquired Property है, तो उस पर पोते का कोई कानूनी हक नहीं होता। इसका मतलब ये है कि:

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  • दादाजी अपनी इस संपत्ति को किसी को भी दे सकते हैं, चाहे बेटा हो, बेटी हो या बाहर का कोई व्यक्ति।
  • वो इसे वसीयत (Will) के जरिए बांट सकते हैं।
  • अगर दादाजी ने वसीयत नहीं बनाई और उनका निधन हो गया, तो ये संपत्ति उनके पहले दर्जे के कानूनी वारिसों (जैसे – पत्नी, बेटा, बेटी) को मिलती है।
  • अगर बेटे यानी पोते के पिता जिंदा हैं, तो पोता इस संपत्ति पर किसी भी हाल में दावा नहीं कर सकता।

अब बात करते हैं पैतृक संपत्ति की – जिसमें पोते का पूरा हक होता है

पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) वो होती है जो चार पीढ़ियों से चली आ रही हो। जैसे परदादा → दादा → पिता → पोता। इस संपत्ति में पोते का जन्म से ही हक बनता है, चाहे उसका नाम दस्तावेजों में दर्ज हो या नहीं।

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मतलब क्या हुआ?

  • जैसे ही कोई बच्चा पैदा होता है, वो पैतृक संपत्ति का स्वाभाविक उत्तराधिकारी (legal heir) बन जाता है।
  • इस संपत्ति को दादा या पिता बिना बंटवारा किए बेच नहीं सकते।
  • अगर कोई व्यक्ति पैतृक संपत्ति को बेचता है, तो पोता कोर्ट में जाकर उसे चुनौती दे सकता है।

क्या पोता कोर्ट में केस कर सकता है?

हाँ, अगर आपको लगता है कि आपकी पैतृक संपत्ति में आपका हक छीना जा रहा है, तो आप दीवानी न्यायालय (Civil Court) में केस कर सकते हैं। इसके लिए:

  • आपको सबूत देने होंगे कि वो संपत्ति पैतृक है।
  • अगर जमीन बेची गई है, तो ट्रांजैक्शन डिटेल्स और दस्तावेजों की जरूरत होगी।
  • कोर्ट में मामला लड़ने के लिए किसी अनुभवी वकील की मदद लें।

क्या हर राज्य में यही नियम लागू होता है?

भारत में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 (Hindu Succession Act 1956) के तहत यह नियम लागू होता है। लेकिन कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार में समय-समय पर स्थानीय कानूनी व्याख्याएं और फैसले भी प्रभावी होते हैं। इसलिए राज्य के अनुसार सलाह लेना जरूरी होता है।

अगर वसीयत (Will) बनी हो तो?

अगर दादाजी ने पैतृक संपत्ति की वसीयत किसी के नाम बना दी है, तो भी यह पूरी तरह वैध नहीं मानी जाती, क्योंकि:

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  • पैतृक संपत्ति को दादाजी अपनी मर्जी से किसी एक को नहीं दे सकते।
  • सभी वारिसों का समान अधिकार होता है – इसमें बेटा, बेटी और पोता सभी शामिल हैं।

कुछ खास बातें ध्यान रखने लायक

  1. न्यायिक प्रक्रिया लंबी हो सकती है, इसलिए धैर्य रखें।
  2. परिवार में बातचीत से मामला सुलझ जाए तो कोर्ट-कचहरी की नौबत नहीं आती।
  3. संपत्ति से जुड़े कागज़ात जैसे रजिस्ट्री, खसरा नंबर, वसीयत आदि को अच्छे से समझें और रखें।
  4. वकील की मदद से Property Search Report और Family Tree Certificate बनवाएं।

अगर दादाजी की संपत्ति स्व-अर्जित है, तो पोते को उस पर कोई हक नहीं होता। लेकिन अगर संपत्ति पैतृक है, तो पोते को जन्म से ही हक मिल जाता है। ऐसी स्थिति में कानूनी मदद लेकर अपना हक हासिल किया जा सकता है।

ध्यान रखें – आधी जानकारी से नुकसान होता है। इसलिए अगर आपको भी अपनी पैतृक संपत्ति को लेकर कोई संदेह है, तो एक अनुभवी वकील से बात करें और सही कदम उठाएं।

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