पिता की संपत्ति में बेटियों को नहीं मिलेगा हिस्सा, जाने कोर्ट चौकाने वाला फैसला Supreme Court Rules

By Prerna Gupta

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Supreme Court News

Supreme Court Rules – भारतीय परिवारों में वसीयत को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां परिवार के एक या एक से अधिक सदस्य वसीयत के फैसले से संतुष्ट नहीं होते। हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें एक पिता ने अपनी बेटी को वसीयत में कोई हिस्सा नहीं दिया, और मामला कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट ने इस पर 9 अहम पॉइंट्स में अंतिम आदेश जारी किया है जो ऐसे सभी मामलों में मिसाल बन सकते हैं।

वसीयत से जुड़े कानूनी पहलू क्या हैं?

भारत में वसीयत पूरी तरह से कानूनी दस्तावेज होता है, जिससे व्यक्ति अपनी संपत्ति के बंटवारे का निर्देश दे सकता है। लेकिन जब इसमें किसी उत्तराधिकारी को जानबूझकर बाहर रखा जाता है, तो विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है। कोर्ट तब देखती है कि क्या वसीयत वैध तरीके से तैयार की गई थी, क्या किसी पर दबाव डाला गया था, और क्या सभी कानूनी नियमों का पालन किया गया था।

कोर्ट के 9 आदेश – हर पॉइंट में छिपी अहम बात

कोर्ट ने इस मामले में 9 स्पष्ट बातें कही हैं:

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  1. वसीयत कानूनी रूप से वैध है या नहीं – इसकी पुष्टि सबसे पहले की जाती है।
  2. वसीयत से बाहर किए गए अन्य उत्तराधिकारियों के अधिकारों की जांच जरूरी है।
  3. वसीयत में किसी तरह की गड़बड़ी हुई हो, तो उसे साबित करना होगा।
  4. परिवार के सदस्यों की गवाही और बयान कोर्ट के लिए बेहद अहम हैं।
  5. वसीयत का उद्देश्य क्या था और उसमें किन-किन लोगों को लाभ मिला है, यह देखा जाएगा।
  6. क्या किसी को अनुचित लाभ दिया गया है?
  7. वसीयत को लेकर कानूनी और नैतिक दोनों नजरिए से मूल्यांकन किया जाएगा।
  8. अगर जरूरी लगे, तो कोर्ट कुछ कानूनी कदम सुझा सकता है।
  9. आखिर में कोर्ट अपने निर्णय को अमल में लाने के निर्देश देगा।

वसीयत को कैसे चुनौती दी जा सकती है?

अगर कोई व्यक्ति वसीयत से संतुष्ट नहीं है, तो उसके पास कोर्ट जाने का विकल्प होता है। इसके लिए पहले एक अच्छे वकील से राय लेनी चाहिए, फिर दस्तावेज तैयार कर कोर्ट में याचिका दायर करनी होती है। कोर्ट में पूरी प्रक्रिया में गवाह, दस्तावेज और परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है।

किन कारणों से वसीयत में विवाद होते हैं?

अक्सर देखा गया है कि परिवार में संपत्ति के असमान वितरण, भावनात्मक पक्षपात या वसीयत की अस्पष्ट भाषा विवाद का कारण बनती है। कई बार पुराने दस्तावेज, मनमुटाव और अदालती जानकारी की कमी भी स्थिति को बिगाड़ देते हैं।

विवाद से कैसे बचा जाए?

सबसे जरूरी है कि वसीयत पारदर्शी और स्पष्ट भाषा में लिखी जाए। सभी लाभार्थियों को जानकारी दी जाए और कोशिश हो कि परिवार में सहमति बनी रहे। समय-समय पर वसीयत की समीक्षा करना भी फायदेमंद हो सकता है।

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वसीयत की वैधता कैसे तय होती है?

कोर्ट आमतौर पर देखती है कि वसीयत स्वतंत्र रूप से, बिना दबाव और सही कानूनी प्रक्रिया के तहत तैयार की गई है या नहीं। इसमें गवाहों की मौजूदगी, दस्तावेज की स्थिति और निष्पक्षता बहुत अहम होती है।

इस मामले में कोर्ट ने दिखा दिया कि अगर किसी को जानबूझकर वसीयत से बाहर किया गया है और कोई अनियमितता है, तो वह व्यक्ति कानून की मदद से अपना अधिकार पा सकता है। वहीं, अगर वसीयत पूरी तरह वैध है, तो कोर्ट उसे बरकरार रखती है।

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यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह नहीं है। यदि आप वसीयत या उत्तराधिकार से जुड़ी किसी भी समस्या का सामना कर रहे हैं, तो कृपया किसी योग्य वकील से व्यक्तिगत परामर्श लें।

Prerna Gupta

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