Contract Employees Regularization News – अगर आप संविदा कर्मचारी हैं या आपके परिवार में कोई कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी कर रहा है, तो ये खबर आपके लिए किसी तोहफे से कम नहीं है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए संविदा पर काम कर रहे कुछ कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश दिया है। ये वही कर्मचारी हैं जो पिछले 28 सालों से लगातार सेवा दे रहे थे। कोर्ट ने इनके पक्ष में फैसला देकर यह साफ कर दिया कि लम्बे समय से सेवा दे रहे संविदा कर्मचारी भी न्याय के हकदार हैं।
आइए आपको आसान भाषा में समझाते हैं कि मामला क्या था, कोर्ट ने क्या कहा और इसका असर बाकी संविदा कर्मचारियों पर क्या हो सकता है।
क्या था पूरा मामला?
बेंगलुरु में कुछ संविदा कर्मचारी – भगवान दास और उनके साथ 15 लोग – नगर निगम में वाल्वमैन और पंप ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे थे। 1996 से लगातार ये सभी कर्मचारी सेवा दे रहे थे, पहले सीधे ठेके पर और बाद में आउटसोर्स एजेंसी के जरिए।
साल 2006 में कर्नाटक सरकार ने ठेका प्रणाली को खत्म कर दिया था, लेकिन इन लोगों की नौकरी आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से जारी रही। इसी दौरान 2016 में 79 अन्य कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया, लेकिन इन 16 लोगों को नजरअंदाज कर दिया गया।
जब इनकी अपील पर जिला अधिकारी ने कोई सुनवाई नहीं की, तब ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा।
कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति एस सुनील दत्त यादव ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि:
- याचिकाकर्ताओं ने नगर निगम के अधीन 10 साल से अधिक सेवा दी है
- ये कर्मचारी स्वीकृत पदों पर काम कर रहे थे, लेकिन भर्ती रोक के चलते इनकी नौकरी स्थायी नहीं की गई
- संविदा प्रणाली और आउटसोर्सिंग को अब सीधे भर्ती से बचने का तरीका माना जा रहा है
इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि जब कोई व्यक्ति 10 साल तक लगातार काम करता है, तो उसे सेवा में निरंतरता मिलनी चाहिए और सेवा अवधि को रिटायरमेंट बेनिफिट्स में जोड़ा जाना चाहिए।
अब तक क्यों नहीं हुआ था नियमितीकरण?
सरकार की तरफ से तर्क था कि भले ही कर्मचारी लंबे समय से काम कर रहे हों, लेकिन वे प्रत्यक्ष नियुक्त नहीं थे। वे तो ठेकेदार के माध्यम से काम कर रहे थे, इसलिए सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती।
लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को ठुकरा दिया और कहा कि अगर सरकार खुद भर्ती नहीं कर रही और आउटसोर्सिंग से काम ले रही है, तो इसकी जिम्मेदारी भी सरकार की ही बनती है।
क्या हर संविदा कर्मचारी को होगा फायदा?
अब इस फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इसका फायदा हर संविदा कर्मचारी को मिलेगा?
तो इसका जवाब थोड़ा मिला-जुला है। नहीं, यह आदेश फिलहाल सिर्फ भगवान दास और 15 अन्य याचिकाकर्ताओं पर ही लागू होता है। लेकिन हां, यह एक मजबूत मिसाल जरूर बन सकता है, जिसकी मदद से बाकी संविदा कर्मचारी भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
नियमितीकरण की शर्तें क्या होंगी?
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हर कोई नियमित नहीं हो सकता। इसके लिए कुछ शर्तें होंगी:
- कर्मचारी ने कम से कम 10 साल की लगातार सेवा दी हो
- उसकी सेवा किसी स्वीकृत पद के विरुद्ध ली गई हो
- वह आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से सरकारी विभाग में सेवा दे रहा हो
नियमितीकरण से क्या-क्या फायदे मिलेंगे?
अगर किसी संविदा कर्मचारी को नियमित किया जाता है, तो उसके फायदे सिर्फ एक स्थायी नौकरी तक सीमित नहीं होते। उससे जुड़ी कई दूसरी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिलती है:
- पेंशन और ग्रेच्युटी जैसी सेवानिवृत्ति सुविधाएं
- स्वास्थ्य बीमा और अन्य कर्मचारी लाभ
- परिवार को भी भविष्य में लाभ मिलने की संभावना
- स्थिर नौकरी से सामाजिक सुरक्षा और आत्मविश्वास में वृद्धि
क्या बाकी राज्य भी इसका पालन करेंगे?
फिलहाल यह आदेश कर्नाटक हाईकोर्ट का है, इसलिए यह कानूनी रूप से पूरे भारत में लागू नहीं होगा। लेकिन यह एक न्यायिक मिसाल बन सकता है। कई बार अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट दूसरे राज्य के फैसले का हवाला देते हुए निर्णय करते हैं।
इसलिए अब यूपी, बिहार, एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में भी संविदा कर्मचारी इस फैसले को आधार बनाकर रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं।
आगे क्या करें संविदा कर्मचारी?
अगर आप भी संविदा पर काम कर रहे हैं और आपको लगता है कि आपकी नौकरी लंबे समय से है और सरकार ने बिना कारण आपको नियमित नहीं किया, तो:
- अपनी सेवा से जुड़े सारे दस्तावेज़ सहेज कर रखें
- RTI से जानकारी लेकर अपनी स्थिति समझें
- कर्मचारी यूनियन या कानूनी सलाहकार से संपर्क करें
- जरूरत पड़ने पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करें
इस फैसले ने लाखों संविदा कर्मचारियों के दिलों में एक उम्मीद जगा दी है। यह केवल कानूनी जीत नहीं है, यह सम्मान की बहाली है – उन लोगों के लिए जो दशकों से बिना किसी स्थायित्व के देश की सेवा कर रहे हैं।
अब समय है कि बाकी राज्य सरकारें भी इस दिशा में कदम उठाएं और संविदा कर्मचारियों को उनका हक दें।