Property Rights – अगर आप किसान हैं, या आपके पास पुश्तैनी ज़मीन है और आपको डर लगता है कि सरकार विकास के नाम पर आपकी ज़मीन छीन सकती है, तो अब राहत की सांस लीजिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जो करोड़ों लोगों के हक को मजबूती देता है। कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया है कि जब तक ज़मीन का उचित मुआवज़ा नहीं मिलेगा, तब तक किसी को ज़मीन से बेदखल नहीं किया जा सकता।
ये फैसला कर्नाटक के एक पुराने केस पर आया है लेकिन इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा। चलिए आसान भाषा में समझते हैं कि क्या है पूरा मामला, कोर्ट ने क्या कहा और आपके लिए इसका मतलब क्या है।
क्या था मामला?
ये केस था बेंगलुरु-मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट से जुड़ा। साल 2003 में सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए किसानों की ज़मीन अधिग्रहित करनी शुरू कर दी। 2005 तक कई किसानों की ज़मीन ले ली गई। लेकिन हुआ क्या? उन्हें उनका मुआवज़ा ही नहीं दिया गया।
ज़रा सोचिए, आपकी ज़मीन सरकार ले जाए और सालों तक आप मुआवज़े के लिए भटकते रहें। यही हुआ उन किसानों के साथ भी। जब बात नहीं बनी, तो उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट से भी राहत नहीं मिली तो मामला सीधा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
मुआवज़ा भी देरी से और वो भी पुराने रेट पर!
सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि जब सरकार मुआवज़ा देने पर आई भी, तो 2011 के रेट पर रकम तय की गई। अब ज़रा सोचिए – 2005 में ज़मीन ली गई, 2022 तक मुआवज़ा नहीं मिला और फिर 2011 के रेट पर पैसे देने की बात हुई! इतने सालों में ज़मीन की कीमतें दोगुनी-तिगुनी हो चुकी थीं। ऐसे में किसान क्यों माने?
सुप्रीम कोर्ट का दमदार दखल
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और संविधान के आर्टिकल 300-A को आधार बनाया, जो संपत्ति के अधिकार की बात करता है। कोर्ट ने कहा – जब तक उचित कानूनी प्रक्रिया पूरी न हो और मुआवज़ा उचित न हो, तब तक ज़मीन से किसी को हटाया नहीं जा सकता।
कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि सिर्फ मुआवज़ा देना काफी नहीं है, वो न्यायसंगत और वर्तमान बाज़ार दर पर होना चाहिए।
नया मुआवज़ा कैसे तय होगा?
कोर्ट ने आदेश दिया कि 2019 की अप्रैल महीने की मार्केट वैल्यू के हिसाब से मुआवज़ा तय किया जाए। यानी कोर्ट ने माना कि ज़मीन की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं और सरकार को देरी का फायदा नहीं मिलना चाहिए।
ये बात बहुत अहम है क्योंकि इससे आने वाले हर ऐसे केस में यह सिद्धांत लागू होगा कि अगर मुआवज़ा देर से दिया जा रहा है, तो वह आज के रेट से दिया जाए।
समयसीमा भी तय की गई
कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि यह काम दो महीने के अंदर पूरा किया जाए। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसानों को मुआवज़ा कम लगे, तो वो उसके खिलाफ दोबारा कोर्ट जा सकते हैं।
मतलब सिर्फ आदेश देकर कोर्ट पीछे नहीं हटा बल्कि उसने यह भी सुनिश्चित किया कि फैसला जमीन पर लागू हो।
अब ज़मीन मालिकों के लिए क्या मायने रखता है ये फैसला?
- सरकार आपकी ज़मीन बिना कानूनी प्रक्रिया और सही मुआवज़े के नहीं ले सकती
- अगर सरकार मुआवज़ा देने में देरी करती है, तो आपको नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा – आपको आज की कीमत मिलेगी
- किसी भी अधिग्रहण में पारदर्शिता ज़रूरी होगी
- सरकारी अधिकारी अगर लापरवाही करते हैं तो उन्हें जवाब देना होगा
सिर्फ कर्नाटक नहीं, पूरे देश में असर
ये फैसला सिर्फ एक राज्य का नहीं है, बल्कि यह देश के हर ज़िले, हर गांव के उस व्यक्ति के लिए है जिसकी ज़मीन विकास प्रोजेक्ट्स में ली जाती है। अब कोई भी प्राधिकरण अपनी मर्जी से ज़मीन नहीं ले पाएगा। यह फैसला सरकारी एजेंसियों को जवाबदेह बनाएगा और भू-स्वामियों को सुरक्षा देगा।
विकास जरूरी है, लेकिन न्याय भी उतना ही जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि देश में विकास ज़रूरी है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि किसी एक वर्ग को कुचल दिया जाए। सबको साथ लेकर चलने की भावना ही असली लोकतंत्र है। विकास तभी टिकाऊ है जब उसमें न्याय हो।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बात ये रही कि सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ संवैधानिक सिद्धांत बताया, बल्कि यह भी दिखाया कि न्याय कैसे व्यावहारिक तरीके से दिया जाता है। अदालत ने जनता का विश्वास फिर से मजबूत किया कि जब कोई अन्याय करेगा तो न्यायपालिका उसके खिलाफ खड़ी होगी।
अब जब भी सरकार या कोई सरकारी एजेंसी ज़मीन अधिग्रहण की बात करे, तो आपको डरने की जरूरत नहीं है। आप जान चुके हैं कि आपके पास संविधान की ताकत है और सुप्रीम कोर्ट आपके साथ है। बिना मुआवज़े के कोई आपकी ज़मीन नहीं ले सकता, और अगर लेता है तो न्याय की डोर आपके हाथ में है।