Cheque Bounce New Rules 2025 – आजकल चाहे जितनी भी डिजिटल पेमेंट्स का चलन बढ़ गया हो, लेकिन चेक का इस्तेमाल अब भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। चाहे व्यापार हो, जमीन की डील हो या फिर किसी को लोन चुकाना हो – चेक अब भी एक भरोसेमंद जरिया माना जाता है। लेकिन अगर आप भी किसी को चेक देने की सोच रहे हैं, तो जरा संभल जाइए। क्योंकि अगर वो चेक बाउंस हो गया, तो सीधा जेल तक की नौबत आ सकती है।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि चेक बाउंस होता क्या है, किन कारणों से होता है, इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए, और अगर मामला कोर्ट तक चला गया तो क्या-क्या हो सकता है। सब कुछ आसान हिंदी में, बिल्कुल आपके काम की जानकारी।
चेक क्या होता है और क्यों जरूरी है?
चेक एक तरह का लिखित आदेश होता है, जिसे खाता धारक बैंक को देता है कि वह किसी खास व्यक्ति को एक तय राशि का भुगतान करे। ये एक लीगल डॉक्यूमेंट होता है, जो कोर्ट में सबूत के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी अगर आपने किसी को चेक दिया है, तो वो आपके खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी कर सकता है।
चेक डिसऑनर और चेक बाउंस में फर्क
जब बैंक किसी कारण से चेक की रकम देने से इनकार कर देता है, तो इसे चेक डिसऑनर कहा जाता है। इसमें कई कारण हो सकते हैं – जैसे खाते में पैसे न होना, सिग्नेचर न मिलना या गलत जानकारी। अगर खासतौर पर खाते में पैसे न होने के कारण चेक फेल होता है, तो उसे चेक बाउंस कहा जाता है।
किन वजहों से चेक हो सकता है बाउंस?
- खाते में पैसे न होना
- गलत तारीख या अधूरी जानकारी
- सिग्नेचर मेल न करना
- तीन महीने से पुराना चेक
- पोस्ट डेटेड चेक का पहले इस्तेमाल
- अकाउंट बंद हो जाना
- बैंक को भुगतान रोकने की सूचना देना
क्या कहता है भारतीय कानून?
भारतीय कानून में चेक बाउंस को हल्के में नहीं लिया जाता। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अगर चेक जानबूझकर बाउंस हुआ है या खाते में पैसे न होने के कारण पेमेंट नहीं हुआ, तो यह अर्ध-आपराधिक मामला माना जाता है। सजा क्या हो सकती है?
- 2 साल तक की जेल
- चेक की राशि का दोगुना जुर्माना
- या फिर दोनों
चेक बाउंस से कैसे बचें?
अगर आप नहीं चाहते कि कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगे, तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें:
- चेक देने से पहले अकाउंट में पर्याप्त पैसा रखें
- सभी जानकारी सही भरें – नाम, तारीख, राशि
- पुराने चेक का इस्तेमाल न करें
- पोस्ट डेटेड चेक देने से पहले रिसीवर को जानकारी दें
- खाते की एक्टिव स्थिति चेक करें
- अगर पेमेंट नहीं कर सकते, तो सामने वाले को पहले ही बता दें
चेक बाउंस हुआ तो क्या होता है?
- बैंक एक रिटर्न मेमो देता है, जिसमें कारण लिखा होता है
- बैंक पेनल्टी चार्ज कर सकता है
- रिसीवर धारा 138 के तहत नोटिस भेज सकता है
- अगर भुगतान नहीं हुआ, तो एफआईआर दर्ज हो सकती है
- मामला कोर्ट में चला गया तो क्रेडिट स्कोर और लोन लेने की क्षमता पर असर
- व्यापारिक रिश्ते भी खराब हो सकते हैं
कब लागू होती है धारा 138?
- चेक किसी वैध कर्ज या देनदारी को चुकाने के लिए होना चाहिए
- चेक मान्य समय सीमा के भीतर बैंक में लगाया गया हो
- डिसऑनर का कारण जायज़ हो
- चेक बाउंस के 30 दिनों के भीतर कानूनी नोटिस भेजा गया हो
- नोटिस के 15 दिनों के भीतर पेमेंट न किया गया हो
अगर चेक चोरी हो जाए या गुम हो जाए?
- तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज कराएं
- बैंक को जानकारी दें
- यह बाद में लीगल डिफेंस में मदद करेगा
नोटिस भेजते वक्त किन बातों का ध्यान रखें?
- चेक और रिटर्न मेमो की कॉपी सुरक्षित रखें
- नोटिस वकील के माध्यम से भेजें, रजिस्टर्ड पोस्ट/ईमेल/व्हाट्सऐप से
- नोटिस में चेक की राशि, तारीख और डिसऑनर का कारण लिखा होना चाहिए
- 15 दिन में पेमेंट की मांग जरूर करें
अगर दोबारा चेक बाउंस हो जाए?
- अगर पहली बार नोटिस नहीं भेजा गया, तो चेक को फिर से बैंक में लगाया जा सकता है
- नया रिटर्न मेमो मिलने के बाद फिर से नोटिस भेज सकते हैं
- ध्यान रखें कि चेक की वैधता सिर्फ 3 महीने होती है
कानूनी कार्यवाही कहां होगी?
मामला उस कोर्ट में दाखिल किया जा सकता है, जहां चेक प्राप्तकर्ता की बैंक शाखा है। इससे आरोपी को उसी क्षेत्र में आना होगा और पेशी देनी होगी।
कोर्ट में मामला चलने पर कितना समय लगता है?
- औसतन 3 से 4 साल
- पहले शिकायत दर्ज होती है
- फिर शपथ-पत्र, समन, गवाही, क्रॉस एग्जामिनेशन और बहस
- कोर्ट 20% तक अंतरिम मुआवजा भी दे सकता है
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि “सिर्फ सिक्योरिटी के लिए चेक दिया गया था” वाली दलील से कोई राहत नहीं मिलेगी। अगर चेक की तारीख को वास्तव में राशि बकाया थी, तो केस चल सकता है।
क्यों मजबूत होता है रिसीवर का पक्ष?
धारा 139 के तहत यह मान लिया जाता है कि चेक किसी कर्ज या देनदारी के लिए दिया गया है। अब यह जिम्मेदारी चेक देने वाले की होती है कि वह साबित करे कि कोई बकाया नहीं था।
समझौता और अपील के ऑप्शन
- आपसी सहमति से मीडिएशन या समझौता किया जा सकता है
- कोर्ट के फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है
- झूठी शिकायत पर भी कानूनी कार्रवाई संभव है
क्या आरोपी को जमानत मिलती है?
हां, चेक बाउंस गैर-जमानती अपराध नहीं है। आरोपी को बेल बॉन्ड पर आसानी से जमानत मिल जाती है। लेकिन अगर मामला बार-बार दोहराया गया, तो कोर्ट सख्त रवैया अपना सकता है।
तो अगली बार जब भी आप किसी को चेक देने का सोचें, तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें। एक छोटी सी लापरवाही आपको कोर्ट-कचहरी और जुर्माने की मुश्किल में डाल सकती है। खासतौर पर व्यापार करने वालों, मकान मालिकों और बड़े लेन-देन करने वालों को इन नियमों की जानकारी जरूर होनी चाहिए।