Cheque Bounce Rules – आज के समय में भले ही लोग ऑनलाइन पेमेंट, UPI और नेट बैंकिंग जैसी सुविधाओं का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हों, लेकिन कई लोग अब भी चेक से लेन-देन करना पसंद करते हैं। खासकर बिजनेस ट्रांजैक्शन, लोन रीपेमेंट या किराया जैसे मामलों में चेक एक भरोसेमंद माध्यम बना हुआ है। लेकिन अगर चेक बाउंस हो जाए तो मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाता है और फिर शुरू होता है भाग-दौड़ का सिलसिला।
अब इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जो चेक बाउंस से जुड़े हजारों मामलों में राहत ला सकता है। कोर्ट का कहना है कि अगर दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति से समझौता हो जाए, तो केस को सुलझाया जा सकता है और आरोपी को सजा से भी राहत मिल सकती है।
चेक बाउंस – आम लेकिन पेचीदा समस्या
जब कोई व्यक्ति किसी को चेक देता है और वह चेक किसी कारण से बैंक में क्लीयर नहीं होता, तो उसे “चेक बाउंस” कहा जाता है। इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं जैसे:
- खाते में पर्याप्त बैलेंस न होना
- चेक पर हस्ताक्षर न मिलना
- ओवरड्राफ्ट सीमा से बाहर जाना
- बैंक अकाउंट बंद हो जाना
चेक बाउंस को भारतीय दंड संहिता की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध माना गया है, जिसमें आरोपी को दो साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक केस की सुनवाई के दौरान निचली अदालतों और प्रशासन को एक अहम सलाह दी है। कोर्ट का कहना है कि चेक बाउंस के अधिकतर मामले बहुत लंबे समय तक पेंडिंग रहते हैं। इससे दोनों पक्षों का समय, पैसा और मानसिक ऊर्जा बर्बाद होती है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है और रकम वापस कर दी जाती है, तो सजा को माफ किया जा सकता है।
एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
एक मामले में, जहां आरोपी ने शिकायतकर्ता को चेक की रकम लौटा दी थी और दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया था, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की सजा रद्द कर दी। जजों की बेंच ने कहा कि जब मामला आपसी सहमति से सुलझ गया है, तो आरोपी को जेल भेजने का कोई मतलब नहीं बनता।
यह फैसला एक मिसाल बन गया है क्योंकि इससे ये स्पष्ट हुआ कि कोर्ट चेक बाउंस के मामलों में जेल से ज्यादा समझौते को प्राथमिकता दे सकता है।
निचली अदालतों को दी गई सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने सभी निचली अदालतों से कहा है कि वे ऐसे मामलों में जल्द से जल्द समझौते की संभावनाएं तलाशें और केस को बिना देर किए सुलझाएं। कोर्ट का मानना है कि जब दोनों पक्ष आपस में मामला सुलझाने को तैयार हों, तो अदालत को भी लचीला रवैया अपनाना चाहिए।
ऐसे मामलों में मुकदमेबाज़ी को टालकर समय और संसाधनों की बचत की जा सकती है, जिससे न्याय प्रणाली पर भी बोझ कम होगा।
समझौते की राह आसान क्यों है?
- अगर आरोपी शिकायतकर्ता को पूरी रकम वापस कर देता है
- अगर शिकायतकर्ता संतुष्ट है और केस को आगे नहीं बढ़ाना चाहता
- अगर दोनों पक्ष कोर्ट में लिखित रूप से समझौता दर्ज कराते हैं
तो इन सभी स्थितियों में अदालत आरोपी को राहत दे सकती है।
रेगुलेटरी अपराध क्या होता है?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चेक बाउंस एक रेगुलेटरी अपराध (Regulatory Offence) है, यानी यह कोई गंभीर अपराध नहीं है जैसे हत्या या डकैती। इसलिए इसमें सजा देने की जगह, समझौते और मुआवजे से मामला सुलझाना ज्यादा बेहतर विकल्प है।
कोर्ट का यह भी मानना है कि इस सलाह को सिर्फ चेक बाउंस तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि वचन पत्र (Promissory Note) जैसे अन्य मामलों में भी लागू किया जा सकता है।
आपके लिए क्या मायने रखता है यह फैसला?
अगर आप बिजनेस करते हैं, मकान किराए पर देते हैं, या किसी को लोन देते हैं और चेक के ज़रिए पेमेंट लेते हैं, तो यह फैसला आपके लिए बहुत अहम है। अब चेक बाउंस की स्थिति में घबराने की जरूरत नहीं है। अगर सामने वाला व्यक्ति सच्ची मंशा से रकम वापस करना चाहता है, तो मामला कोर्ट के बाहर भी सुलझाया जा सकता है।
कुछ जरूरी बातें एक नजर में
- चेक बाउंस पर अब समझौते के आधार पर सजा माफ की जा सकती है
- कोर्ट ने कहा, जेल से ज्यादा जरूरी है आपसी सहमति
- निचली अदालतों को ऐसे मामलों को जल्दी निपटाने की सलाह
- यह फैसला वचन पत्र जैसे मामलों पर भी लागू हो सकता है
- चेक बाउंस रेगुलेटरी अपराध है, गंभीर अपराध नहीं
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से चेक बाउंस से परेशान हजारों लोगों को राहत मिल सकती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि लोग लापरवाह होकर चेक जारी करें। चेक एक संवेदनशील दस्तावेज़ है, और इसकी जिम्मेदारी समझकर ही इस्तेमाल करना चाहिए।
अगर चेक देने से पहले आपके खाते में पर्याप्त बैलेंस है और आपकी मंशा साफ है, तो किसी तरह की परेशानी नहीं होगी। और अगर गलती से चेक बाउंस हो जाए, तो घबराने की बजाय सामने वाले से बात करके समाधान निकालना अब आसान हो गया है।