सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला – अब बिना वसीयत भी बेटी को मिलेगा पिता की संपत्ति में पूरा हक Supreme Court Decision

By Prerna Gupta

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Supreme Court Decision – अगर आप भी उस सोच से आते हैं जहां बेटियों को सिर्फ “पराया धन” कहा जाता है, तो अब वक्त है नजरिया बदलने का। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जो सिर्फ कानून की किताबों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समाज की सोच को भी झकझोर देगा।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया है – अगर कोई हिंदू पिता बिना वसीयत के गुजर जाता है, तो उसकी संपत्ति में बेटियों को बराबरी का हक मिलेगा। और ये हक किसी की मेहरबानी नहीं बल्कि कानून का हक होगा। चलिए आपको बताते हैं पूरी कहानी सरल और सीधी भाषा में।

क्या था मामला?

एक पिता की मृत्यु के बाद, उसके भाइयों के बेटे यानी भतीजों ने दावा ठोंक दिया कि उन्हें संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए क्योंकि बेटी तो शादी के बाद ‘पराया घर’ चली जाती है।

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मामला मद्रास हाई कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन वहां से बेटी को निराशा ही हाथ लगी। हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि पिता की कोई वसीयत नहीं थी और बेटी अकेली उत्तराधिकारी है, फिर भी उसे संपत्ति नहीं मिलेगी।

पर बेटी ने हार नहीं मानी और दरवाजा खटखटाया – देश की सबसे बड़ी अदालत का। और यहीं से सब बदल गया।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति कृष्णा मुरारी शामिल थे, उन्होंने 51 पन्नों का विस्तृत फैसला सुनाते हुए साफ कहा:

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  • बेटी को पिता की संपत्ति में समान अधिकार है।
  • ये अधिकार सिर्फ पैतृक संपत्ति तक सीमित नहीं, बल्कि स्वअर्जित संपत्ति पर भी लागू होता है।
  • अगर कोई वसीयत नहीं बनी है तो बेटी को ही पहली प्राथमिकता दी जाएगी।
  • पिता के भाई या उनके बच्चे (भतीजे-भतीजियां) इस हक के सामने पीछे रहेंगे।

यह फैसला न सिर्फ कानूनी तौर पर बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ी बात है।

बेटी का हक कब से और कैसे तय होता है?

ये हक पिता की मृत्यु के साथ ही लागू हो जाता है। इसके लिए ये शर्त नहीं है कि कोई पुरुष उत्तराधिकारी मौजूद न हो।

मतलब साफ है – बेटी होने मात्र से ही उसे संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए। अब यह कहने का कोई मतलब नहीं रह जाता कि “लड़की तो पराई हो जाती है।”

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महिला की खुद की संपत्ति का क्या?

अगर कोई हिंदू महिला बिना वसीयत बनाए गुजर जाती है, तो उसकी संपत्ति के बंटवारे का तरीका ये होगा:

  • अगर वो संपत्ति मायके (पिता/माता) से मिली है, तो वो वापस उसके मायके के वारिसों के पास जाएगी, जैसे भाई-बहन या उनके बच्चे।
  • अगर वो संपत्ति पति या ससुराल से मिली है, तो फिर वो संपत्ति पति के वारिसों को मिलेगी।

ये सब Hindu Succession Act की धारा 15(2) के तहत होता है, और इसका मकसद है कि संपत्ति उसी परिवार में वापस जाए जहां से वो आई थी।

ये फैसला क्यों है खास?

ये कोई मामूली कानूनी बात नहीं है। इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा सामाजिक संदेश भी दिया है:

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  1. बेटे और बेटी में अब कानून कोई फर्क नहीं करता।
  2. ये सोच कि बेटियों को सिर्फ शादी के बाद विदा कर देना ही काफी है – अब बदलनी होगी।
  3. बेटियों को अब अपने अधिकारों के लिए झुकने की जरूरत नहीं, कानून उनके साथ है।
  4. जो बेटियां अब तक अपने हक के लिए दर-दर भटक रही थीं, उन्हें अब सशक्त कानूनी सहारा मिल गया है।

पारिवारिक विवादों पर पड़ेगा असर

हमारे देश में आज भी संपत्ति के बंटवारे को लेकर सबसे ज्यादा झगड़े परिवारों के बीच ही होते हैं। और जब बात बेटी की आती है, तो उसे अक्सर हक से वंचित कर दिया जाता है।

अब ये सुप्रीम कोर्ट का फैसला निचली अदालतों के लिए भी एक गाइडलाइन बन गया है। अब कोई भी परिवार अपनी बेटी को ये कहकर नहीं रोक पाएगा कि “ये तो सिर्फ बेटों का हक है।”

कुछ जरूरी सुझाव

  1. अगर आप अपनी संपत्ति का बंटवारा अपनी मर्जी से करना चाहते हैं, तो अभी से वसीयत (Will) बना लें।
  2. अगर कोई वसीयत नहीं है, तो अब ये फैसला लागू होगा – बेटियों को बराबर का हिस्सा मिलेगा।
  3. वकील से सलाह लें और संपत्ति प्लानिंग में महिला सदस्यों के अधिकारों को जरूर ध्यान में रखें।

बेटियां अब सिर्फ बोझ नहीं, बल्कि हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला न सिर्फ एक कानूनी जीत है, बल्कि हर उस बेटी की जीत है जिसने अपने पिता की संपत्ति को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि वो ‘लड़की’ थी।

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अब वक्त आ गया है कि समाज, रिश्तेदार और परिवार – सब मिलकर ये समझें कि बेटी होना कोई कमज़ोरी नहीं, बल्कि बराबरी का हक है।

तो अगर आप एक बेटी हैं या किसी बेटी के पिता हैं – ये फैसला आपके लिए है, ताकत और अधिकार की मिसाल बनकर।

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